वक्त के परिंदों को जब भी उड़ते देखती हूँ
अपने दुप्पट्टे के कोने में एक गाँठ लगाकर ,,
उस एहसास को कैद करने का जी करता है । . . .
मौसम के विपरीत चलती है जो पवन ,
उस सकूं भरे एहसास को ,
जिन्दगी की डोर में पिरोने का जी करता है । . . .
कुछ प्यारे,कुछ अनजाने ऐसे पल दाखिल हुए जिन्दगी में मेरे ,,
के उनके संग दूर तक चलने को जी करता है । . . .
के उनके संग दूर तक चलने को जी करता है । . . .
बहता है अपनी गति से पानी सदा ,,
पर मेरा .......
सावन की रिम -झिम को हतेली पर समेटने का जी करता है । . . .
जिधर भी देखो , जहा भी देखो
आज हर पेड़ की शाख नयी लगी . . . .
ऐसे ही अनेको गुमनाम एहसासों को लेकर ,,
हल पल मुस्कराने को जी करता है !!!!