जिन्दगी के उस दौर में , दर्द भरा था सिने में ,
सबको पता थी पीड़ा मेरे मन की ,फिर यह उसे ही क्यों न मालूम था . . .
गैरों के पुकारने पर , जिसने गौर किया सभी की बात पर ,
फिर जिससे दिल का रिश्ता बनाया , क्यों नहीं था एहसास उसी के प्यार का . . .
कितना ही रोई नज़रे , उसी के इंतज़ार में ,
हर ओर चहल-पहल थी , पर एक दिल बेजान था ,
सारे जहां की खबर थी उसे, क्या इस बात का पता नहीं था . . . .
उसके बिना न दिन कटता था , न ही रात गुजरती थी ,
बस अँधेरा हुआ था जहां में मेरे , क्या दिल ने उसके इस बात का जीकर किया था . . . . .
जिन राहो पर संग चलने की कसमे खाई , उसके जाने के बाद ,
अकेला रहना होगा मुझको , क्या इस बात से उसे मेरे तनहा होने का ख्याल नही था . . . . .
उसे ही तलाशती थी मेरी नज़रे हर वक्त , उसी से एक कतरा ख़ुशी की चाहत की थी ,
यदि पूछे आज उससे कोई ,तो क्या उसे कभी मेरे बेइंतिहा प्यार का एहसास नहीं था . . . . .