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Tuesday, May 31, 2011


तुझ बिन नीरस मेरी दुनिया,यह काहे ना माने तू ,
कैसे जाताऊ ,किस भाषा में समझाऊ
के तुझ को ही अपना मानु मैं . . . . .

हर पहर तेरा ही जिक्र खुद से करूँ हूँ मैं ,
तू ही बता कैसे किसी से प्रीत निभाऊ मैं . . . . .

तू जो कहीं कहीं समाया है मेरी रूह में
जो मुझे मेरे इस जीवन के अस्तित्व का भान करावे हैं ,

तेरे
संग - संग सब राहों की मुश्किल आसान हुई हैं ,
फिर तुझे क्यों ना अपना बनाऊ मैं . . . . . .

दुनिया में देखो तो ,,,,, इंसानों में जैसे नफरत का वेग हैं
पर, एक तुझसे ही ,,,,,
मेरे
जीवन में छाऊ की शीतल सेज है . . . . . .

बस जरा सी गुजारिश है ,-मेरे-साहेब,
मुक्कमल हो मेरी इतनी सी इच्छा ,
जो
शायद हर पल तुझसे छुपाऊ मैं . . . . . . .