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Thursday, October 21, 2010

" क्या खोया क्या पाया "


जैसा मिला  , भला मिला  ,
     कुछ मिला तो सही . . . .

जो खोया ,चला गया ,
      फिर भी बात संभली रही . . . .

गर हुआ कोई महरूम खुशियों  से ,
      फिर काहे साची हस्ती उसकी मिटती रही . . . .

कोन अपना है ,  कोन हुआ बेगाना ,
      उसकी समझ है यदि , फिर काहे न समझे मन ,
कोई यहाँ सगा नहीं . . . .

कहने को तन्हाई में संग है यादें बहुत ,
     फिर क्यूँ तन्हा जीने की आदत नहीं  . . . .

जिन्दगी में किनारे की तलाश है सभी को ,
      पर राह में आई मुश्किलों का हिसाब नहीं . . . .  

कैसे कहे क्या पा लिया ओर क्या खोया ,
      जब दिल को ख़ुशी का आगाज़ ओर दुःख का एहसास नहीं . . . . .

" कैसे मानु अब नहीं है तू "



तेरा होना आज भी याद आता है मुझको ,
तेरे साथ का बंधन आज भी हंसा जाता है मुझको ॥

तेरे साथ बिताये पल आज भी सलामत है जिन्दगी में मेरी ,
अब जब तू नहीं है इस जहां में ,
तो फिर ,तेरे न होने का सब्र कैसे करूँ ॥

एक घुटन सी है मन मेरे ,
क्यूँ ????
आज हर ख्याल है तेरे संग बंधा सा ॥

ऐसे हालात में , कैसे ????
गिरते आंसुओं को आँखों से दूर करूँ ॥

नींद में भी तेरे होने का आभास है ,
हर बात में तेरी कमी का एहसास है ,,

मालूम है मुझको वक्त के चक्र ने छिना है तुझे मुझसे ,
कोई तो बताये तेरी कमी को अपने जीवन में पूरी कैसे करूँ ॥

अकेले होने पर तेरे साथ की याद आती है ,
भीड़ में भी तुझ बिन तन्हा होने की रुआंसी छाती है ॥

कैसे समझाऊं दिल को अपने ,,
अनेको की भीड़ में कहीं भी अब नहीं है तू ॥