डर लगा अचानक ,जिन्दगी की हर ख़ुशी के अन्त होने का ..
झरने की तरह बहे आंसू , तेरे जाने के बाद . . . .
तुझे कैसे मालूम पड़े , सर्दियों के उन धुंद भरे दिनों में भी ,
सुलगती चिता सी जली हूँ मैं , तेरे जाने के बाद . . . .
साथ न मिला कोई तो , बेजान सी मैं , लिपट कर एक पेड़ से,
क्या मालूम तुझे कितना रोई मैं , तेरे जाने के बाद . . . .
हर चांदनी रात के आगोश में ,नजरें देखती रही उस चाँद को,
तुझे क्या एहसास ,ऐसी ही कितनी रातें निकाली मैंने , तेरे जाने के बाद . . . .
अपनी हर ख़ुशी की आहुति दे डाली मैंने ,
हर वक्त रहते थे पानी के सैलाब आँखों में मेरे ,
यह यकीन था के नहीं लौटेगा तू ,
फिर भी अपनी हर दुआ में ,तेरी ही सलामती की दुआ करी ,तेरे जाने के बाद . . . .
Tuesday, July 27, 2010
Wednesday, July 21, 2010
मुद्दतें बीत गई एक प्यार का अलफ़ाज़ सुने ..
जमाना गुज़र,औरहम तेरी यादों में खोये रहे ..
ऎसी पड़ी बदलते हुए वक्त की मार ..
अब तो उम्र भी निकल रही,और हम सब आंसू समेटे रहे ........
खामोशियो से बढती रही उलझने बीच हमारे ,
सिमटता रहा दिलो का प्यार ,दिल से हमारे ,
क्यों आज समझे है हम, वो इतिफाक ..
की तू नहीं है साथ ...अब हमारे ............
Friday, July 16, 2010
कभी बताया नहीं तुमने
कुछ खुशनुमा मौसम हुआ करता था.......
कुछ रौशनी से भरे बादल थे.......
जब हम पूछते थे तुमसे,तब हम तुम्हारे क्या थे...
प्यार की देहलीज़ पे जब कदम रखा हमने,तब तुम थे संग हमारे...
फिर आज यह वक्त आ गया,की वो सुन्हेरा वक्त कही बहुत दूर चला गया ...
बहुत दूर चले गए ,,, तुम भी तो चले गए थे ,,,,,
ओर कभी बताया भी नहीं ,के ऐसे जाना होगा.....
हर उस पल के परिंदों को आज भी जिन्दा रखा है मैंने अपने जेहन में...
तुम्हें भी वो कुछ बीते पल याद है के नहीं ....
कभी बताया नहीं तुमने......
वो सर्दियों की धुप में हमारा मिलना...
ओर फिर नज़र बहर तुम्हें देख कर मेरा लौट कर चले जाना...
उस दौर का माहोल तुम्हें याद है के नहीं .....
कभी बताया नहीं तुमने..........
कुछ रौशनी से भरे बादल थे.......
जब हम पूछते थे तुमसे,तब हम तुम्हारे क्या थे...
प्यार की देहलीज़ पे जब कदम रखा हमने,तब तुम थे संग हमारे...
फिर आज यह वक्त आ गया,की वो सुन्हेरा वक्त कही बहुत दूर चला गया ...
बहुत दूर चले गए ,,, तुम भी तो चले गए थे ,,,,,
ओर कभी बताया भी नहीं ,के ऐसे जाना होगा.....
हर उस पल के परिंदों को आज भी जिन्दा रखा है मैंने अपने जेहन में...
तुम्हें भी वो कुछ बीते पल याद है के नहीं ....
कभी बताया नहीं तुमने......
वो सर्दियों की धुप में हमारा मिलना...
ओर फिर नज़र बहर तुम्हें देख कर मेरा लौट कर चले जाना...
उस दौर का माहोल तुम्हें याद है के नहीं .....
कभी बताया नहीं तुमने..........
Thursday, July 15, 2010
कैसे भुलाऊ ??
जब भी लोगो की भरी महफ़िल में हम जाते है ,
सभी होते है पास हमारे , पर हम तनहा रह जाते है ,
और अपनी उस तन्हाई में , तुझे अपने ओर करीब पाते है . .
फिर भी तेरे करीब होने की हर उम्मीद तोड़ते है
और फिर घर लौट जाते है !!
वीरानिया कुछ ऐसी बढ़ जाती है , जिन्दगी में मेरी
इसलिए ही , तेरे साथ होने का वादा खुद से निभाते है . .
वक्त के हर पहलु से पूछते है , कैसे भुलाऊ तुझे मेरे हमराही
और खुद ही तेरी जुदाई के गम में सुबक के रह जाते है . .
पर तुम फिकर न करना मेरे आंसुओ की कभी
हम तो नम आँखों से भी हर लम्हा मुस्कराते है !!!
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