वो इत्तेफाक था या सच ,जब हम मिले थे,,,,
कैसे भूले उन प्यार भरी नजरों को,,,जो सिर्फ मेरे करीब होने का एहसास करना चाहती थी॥
पुरानी यादो के सहारे जीना सीख लिया था मैंने ,,फिर यह कैसा इत्तेफाक था ,,,,,,
कैसे कहे तुझसे के तुझ बिन कितने तनहा रह जाते है हम....जब भी मेरी नज़रे देखती है तुझको....क्यों सिर्फ तुझ
ही में खो जाना चाहती है............
यह क्या है ,,,अपनापन या ख़ुद से ही बेगानापन,,,,,,,जो कभी भी न अपनी सोच कर,,,,,,,सिर्फ तुझ में ही खोये रहने
का एहसास दिलाता है.....
यूँ तो मेरा हर लम्हा दर्द में डूबा है,,,,फिर भी तेरे साथ का हर पल एक अनजानी से ख़ुशी का एहसास जगाता
है,,,,,,,,,,,,
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